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अमृतकाल में जनजातीय समुदाय की आकांक्षाओं का हो रहा है सम्मान- विष्णुदत्त शर्मा

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आज़ादी   आजादी का ये अमृतकाल ,  आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का काल है।  भारत की आत्मनिर्भरता ,  जनजातीय भागीदारी के बिना संभव ही नहीं है ।  भारत की सांस्कृतिक यात्रा में जनजातीय समाज का योगदान अटूट रहा है । गुलामी के कालखंड में विदेशी शासन के खिलाफ खासी-गारो आंदोलन ,  मिजो आंदोलन ,  कोल आंदोलन समेत कई संग्राम हुए। गोंड महारानी वीर दुर्गावती का शौर्य हो या फिर रानी कमलापति का बलिदान ,  देश इन्हें भूल नहीं सकता। वीर महाराणा प्रताप के संघर्ष की कल्पना उन बहादुर भीलों के बिना नहीं की जा सकती जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर महाराणा प्रताप के साथ लड़ाई के मैदान में अपने-आप को बलि चढ़ा दिया था। हम इस ऋण को कभी चुका नहीं सकते ,  लेकिन इस विरासत को संजोकर ,  उसे उचित स्थान देकर ,  अपना दायित्व जरूर निभा सकते हैं। जिसकी दिशा में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। मई ,   2014 में जब प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी ने दायित्व संभाला ,  उसी दिन से जनजातीय समाज के उत्थान के प्रयास शुरू कर दिए थे।  देश में 110 से अधिक जिले ऐसे थे ,  जो हर क्षेत्र में पिछड़े हुए थे