कैसे होती थी 65 साल पहले भूपाल की होली
आज भी मौजूद है 1956 का नवभारत "होली-विशेषांक"
-प्रलय श्रीवास्तव
मेरे पास टेबुलाईज्ड साइज का 27 मार्च 1956 का नवभारत का होली विशेषांक आज भी मौजूद है। नवभारत का यह अंक होली विशेषांक था। तब नवभारत छोटे साइज में इब्राहिमपुरा से लाला मुल्कराजजी के भवन के एक छोटे से कमरे से निकलता था। मेरे पिता वरिष्ठ पत्रकार स्व. श्री सत्यनारायण श्रीवास्तव इसमें कार्यरत थे। जबलपुर से निकलने वाले नवभारत का यह पूर्ति अंक "बच्चा नवभारत" के नाम से पुराने शहर की गलियों में जाना और बड़े चाव से पढ़ा जाता था। 65 साल पहले के इस होली विशेषांक में भोपाल और यहाँ की राजनीति, सामाजिकता में क्या खासियत थी, जरा देखिये :-
· तब भोपाल भूपाल के नाम से जाना जाता था।
· 8 पेज का होली विशेषांक तब भी बहुरंगी था।
· पहले पेज पर विश्वकर्मा फर्नीचर पीरगेट और उषा सिलाई मशीन चिंतामन चौराहा के विज्ञापन थे, ये दुकानें पता नहीं अब है या नहीं।
· पहले पृष्ठ पर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा और मंत्रीगण, विधायक, अधिकारी, पत्रकारों की होली की टाईटिल छपी थी।
· दूसरे पृष्ठ पर कविवर जीजाजी की व्यंग कविता गरुण पुराण, शायरी और मरफी रेडियो, फारेस्ट कान्ट्रेक्टर के विज्ञापन थे।
· तीसरे पेज पर राशिफल (व्यंग) और इतवारा रोड के भोपाल इंजीनियरिंग कंपनी का विज्ञापन।
· 4, 5वां पेज भी होली की टाईटल से भरा था, जो भोपाल की जानी-मानी हस्तियों को दी गई थी।
· 6वें पेज पर डाबर, किर्लोस्कर और तत्कालीन सूचना विभाग (जनसम्पर्क) का विज्ञापन था।
· 7वें पेज पर भोपाल के नामचीनों को लेकर होली के रंग और भोपाल के विकास पर लेख था।
· अंतिम 8वें पेज पर विज्ञापनों के अलावा भोपाल टॉकीज में फिल्म "गरम कोट" और भारत टॉकीज में लगी फिल्म "लुटेरा" का विज्ञापन था, तब पहला शो शाम पौने सात और दूसरा रात 10 बजे हुआ करता था।
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